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महापर्व छठ पूजा के अंतिम दिन दिन”उग हो सुरज देव अर्ध्य के बेल ” जैसे पारंम्परिक लोक गीतों के साथ शान्ति पूर्ण संपन्न – नालंदा ।

रवि रंजन ।

कतरीसराय : मंगलवार को लोक आस्था व वैदिक उपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ पूजा के अंतिम दिन दिन”उग हो सुरज देव अर्ध्य के बेल ” जैसे पारंम्परिक लोक गीतों के साथ शान्ति पूर्ण संपन्न हुआ।प्रथम अर्ध्य डुबते सुर्य यानी अस्ताचलगामी भगवान भास्कर तथा दूसरे अर्ध्य उगते सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया जाता है। इस पर्व में छठ व्रती चार दिनों तक उपासना करती हैं । जो नहाए-खाए से आरंभ होता है । तथा उदयाचल गामी सूर्य को अर्घ्य देने के साथ समाप्त होता है, इस व्रत का दूसरा नाम सूर्य षष्ठी भी है, जो सूर्य नारायण की बहन है। इन्हें बलदा देवी भी कहते है । जो बालकों की रक्षा करती है। सभी युगों में सूर्य की उपासना किसी न किसी रूप में अवश्य की गई है।
विदित हो कि छठ पूजा विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश तथा नेपाल के कुछ हिस्सों में बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। वहीं छठ पूजा का महत्व देश के कुछ अन्य राज्यों में भी बढ़ने लगा है। यह पर्व मुख्य रूप से सुर्य देव व उनकी बहन छठी मैया को समर्पित पर्व है। ये पर्व साल में दो बार होता है। जिसमें एक कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से समाप्ति तक मनाई जाती है। उगते सूर्य कि अर्ध्य देने के साथ समाप्त हो जाता है। जिसमें छठ व्रतियों द्वारा नदीयों, तलाब या अन्य जलाशयों में खड़े होकर डाली या सुप जो (बांस का निर्मित) जिसमें फल, फूल, जैसे पुजन सामग्री होता है। को हाथों में लेकर प्रथम अर्ध्य डुबते सुर्य देव व छठी मैया तथा दूतिय अर्ध्य उगते सूर्य देव व छठी मैया का पुजा अर्चना होती है।
सूर्योपासना का इतिहास हमें वैदिक काल से ही मिलता है, जिसका प्रमाण ऋग्वेद में मिलता है।ऋग्वेद में गायत्री मंत्र सूर्योपासना के लिए है।भगवान भुवनेश्वर प्रत्यक्ष देव हैं । जो ब्रह्मा विष्णु एवं रुद्र का समहित रूप हैं। ये प्रतीक हैं जन्म,पालन एवं संहार का।भगवान सूर्य देव में पाए जाने वाली किरणें से हमें विभिन्न रोगों जैसे त्वचा रोग, रिकेट्स आदि से बचाव होता है । साथ ही साथ यह किरनें अपनी ऊर्जा से विभिन्न जीवो को जीवनी शक्ति प्रदान करती है। इस लिए इस सुर्योपासन का विशेष महत्व है।
उगते व डुबते सुर्य देव कि अर्ध्य देने की परंपरा में जीवन का कुछ परम सत्य से भी जुड़ा है । वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी धरती पर सुर्य व नदीयों के बिना जीवन संभव नहीं है। दूसरी पहलू है कि हर अन्त कि एक नई शुरुआत भी होती है। सुर्योदय से प्रकाश होता है उसी तरह जीवन में संतुलन व उर्जा के लिए सुर्य को अर्घ्य अर्पित करना महत्वपूर्ण माना जाता है। जिसमे सूर्य, जल एवं प्रकृति का आभार व्यक्त किया जाता है । तथा समर्पित भाव से नमन किया जाता है| इस पूज में जो सम्मान प्रक्रिया है । इस में कोई भी पुरोहित या पुजारी नहीं होता है । छठ व्रती बिना किसी मध्यस्थता के सूर्य (ऊर्जा), जल एवं प्रकृति को श्रद्धा भाव का समर्पण करते हैं । इस समय प्रकृति में उपलब्ध नए कृषि उपज एवं उससे बने पकवान, जल एवं दुग्ध आदि को शामिल किया जाता है| छठ पूजा इतनी शुद्धता के साथ मनाया जाता है कि यह शुद्धता यानि पवित्रता का भाव भी देखने एवं समझने योग्य है| इसमें कोई मूर्ति का या किसी अन्य सांसारिक चित्रण या आकृति का कोई स्थान नहीं है| यह एक पंथ निरपेक्ष पर्व है, जिसे सभी स्थानीय भी पूरी निष्ठा के साथ मनाते हैं । जो प्रकृति यानि प्राकृतिक शक्तियों का सम्मान की परम्परा है|

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