चावदार तालाब सत्याग्रह, महान स्वतंत्रता सेनानी बाबा साहब डॉ0 भीमराव अंबेडकर ने दलितों एवं समाज के उपेक्षित वर्गों को दिलाया पानी पीने का अधिकार – पश्चिम चंपारण |

महान स्वतंत्रता सेनानी भारतीय संविधान निर्माता सह भारत के महान समाज सुधारक डॉ0 बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि पर सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन
बेतिया। सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी भारतीय संविधान के निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि पर एक सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया। इसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों, बुद्धिजीवियों एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया। इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय पीस एंबेस्डर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ0 एजाज अहमद अधिवक्ता, डॉ0 सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड, डॉ0 शाहनवाज अली, डॉ अमित कुमार लोहिया, वरिष्ठ अधिवक्ता शंभू शरण शुक्ल, सामाजिक कार्यकर्ता नवीदूं चतुर्वेदी, पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन, डॉ0 महबूब उर रहमान एवं अल बयान के सम्पादक डॉ0 सलाम ने संयुक्त रूप से श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि आज ही के दिन 6 दिसंबर को भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी एवं भारतीय संविधान के निर्माता बाबा साहब भीमराव का निधन हुआ था। उनका सारा जीवन सामाजिक उत्थान, पिछड़ों एवं समाज के उपेक्षित वर्ग के लोगों को न्याय दिलाने के लिए समर्पित रहा । 1927 में हुए पानी पीने के हक की ऐतिहासिक लड़ाई “चावदार तालाब सत्याग्रह” आंदोलन हुआ था। इस आंदोलन की अगुवाई बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने की थी जिसे 20 मार्च 1927 को अंजाम दिया गया। महाराष्ट्र के रायगढ़ डिस्ट्रिक्ट के महाड़ स्थान पर। जो कि सार्वजनिक तालाब से अछूतों दलितों को पानी पीने और उपयोग करने के हक को हासिल कराने के लिए काफी असरदार सत्याग्रह था। तालाबों पर पानी पीने के लिए जानवर तो जा सकते थे, लेकिन उसी तालाब से एक मनुष्य को जो कि अछूत एवं समाज के उपेक्षित वर्ग से हो वो पानी पीने की अधिकार नहीं रखता था। भले ही प्यास के मारे वो मर क्यों न जाए। डॉ. अंबेडकर ने तब सार्वजनिक स्थलों से दबे कुचले वंचित तबके को पानी पीने का अधिकार दिलाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी थी और फिर अगस्त 1923 को बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल एक प्रस्ताव ले आया और ये कहा कि जिन स्थानों की देख-रेख कर रही है सरकार उसके इस्तेमाल का हक सबको है। इस आदेश के बाद उस अधिनियम को नगर निगम परिषद ने लागू कर दिया 1 जनवरी 1924 को आदेश मानने को तैयार नहीं हुए। कुछ लोग इस आदेश को मानना ही नहीं चाहते थे और तो और दलितों के चावदार तालाब से पानी लेने का पुरजोर विरोध कर रहे थे। इसके विरुद्ध 1927 में बाबा साहब ने एक बड़ा फैसला लेते हुए एक सत्याग्रह किया। 20 मार्च को बहिष्कृत हितकारिणी सभा के तहत सम्मेलन हुआ। जिसमें शामिल होने के लिए लोग जुटे। इन लोगों की संख्या थी दस हजार से भी ज्यादा। फिर जब ये सम्मेलन खत्म हुआ, तो चावदार तालाब की ओर लोग मार्च के लिए निकल पड़े। दलितों को इतनी बड़ी संख्या में देखा तो वो उनको रोक नहीं पाए फिर सभी दलितों एवं समाज के उपेक्षित वर्ग ने तालाब का पानी पीया और लौट गए। फिर आखिरकार मिल ही गया हक। इस सत्याग्ह का काफी असर हुआ। जब सभी पानी पीकर चले गए तो कुछ। लोगों ने तालाब के पानी को अशुद्ध बताकर उसे शुद्ध किया। फिर इस मामले को लेकर वंचित समाज कोर्ट पहुंच गया। जिस पर दिसंबर 1937 को इंसानियत के पक्ष में फैसला करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने सभी को तालाब का पानी पीने और इस्तेमाल करने की इजाजत दी। इस तरह से ये सत्याग्रह आखिरकर डॉ0 अंबेडकर की अगुवाई में पूरा हुआ।
भारतीय इतिहास में ऐसा पहली दफा हुआ कि पीने के पानी को लेकर सत्याग्रह करना पड़ा हो। बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने जीवन भर समाज के पिछड़ों दलितों अल्पसंख्यकों के लिए आवाज उठाते रहे, ताकि भारत को मजबूती प्रदान की जाए जिसका सपना वर्षों पहले महात्मा गांधी अमर शहीदों स्वतंत्रता सेनानियों एवं हमारे पुरखों ने देखा था।