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होली गीतों में प्रेम और भक्ति के बावजूद ,भोजपुरी के फूहड़ गीतों से हो रहा रसभंग :- रामरतन प्रसाद सिंह ‘रत्नाकर’ – नवादा |

रवीन्द्र नाथ भैया |

माघ वसंत पंचमी से चैत्र प्रतिपदा तक करीब डेढ़ महीने तक फगुआ या होली की स्वर लहरी को स्पष्ट करने में होली मंडली सुरीले तान में झूम उठती है। गायक मंडली परम्परागत ढोल, नाल, करताल आदि वाद्य यंत्रों के साथ प्रेम और भक्ति से भरे होली गीत गाने लग जाती है।
शरद ऋतु की जकड़न से मुक्ति का एहसास, सरसो के पीले फूल, तो मसूर – तीसी के नीले पौधे भरोसे का प्रतीक मसूर बनकर किसानों के पास रबी फसल, तेलहन-दलहन की फसल से कोठी भर जाने का एहसास दिलाते हैं।
बागों में कोयल की कूक, पक्षियों का कलरव और भंवरों के भनभनाने के साथ ही हवा की मधुर गति देख मनुष्य मान लेता है कि ऋतुओं के राजा वसंत का आगमन हो गया है। इसी वसंत के मस्त मौसम के उत्सव का अगला पड़ाव है-होली, फक्कड़पन से भरा उत्सव !
होली के परम्परागत गीत में ‘सुमिरन’ के तहत गायक मंडली के लोग गाते हैं:-
‘सुमिरहुँ सीरी भगवान अरे लाला
सुमिरहुँ सीरी भगवान होऽ
अहो, जेही, जेही सुमिरत
सब काम बनत है – सुमिरहुँ सीरी..
पूरब में सुमिरहुँ उगत सुरुजवा
उगत सुरुजवा होऽऽ
पश्चिम में चिर सत्यतान अरे लाला,
सुमिरहुँ सीरी भगवान होऽ
उत्तर में सुमिरहुँ उत्पति गंगा,
दखिन सुमिरहुँ हनुमान
नीचे सुमिरहूँ धरती माई के
ऊपर सुमिरहुँ भगवान होऽऽ
गया में सुमिरहुँ गया- गजाधर
काशी विसेसर नाथ,
जेही सुमिरत सब काम बनत है
सुमिरहुँ सीरी भगवानऽऽ
अर्थात्
श्री भगवान का स्मरण करें, जिनके स्मरण मात्र से सारे कार्यों की सिद्धि होती है। सर्वप्रथम पूरब में उगते सूर्य का स्मरण, तो पश्चिम में सत्यतान का स्मरण, तो दक्षिण में हनुमान का स्मरण, उत्तर दिशा में गंगा, नीचे धरती माता के साथ गया के गजाधर के स्मरण करने से काशी के विश्वनाथ के स्मरण करने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं। यह सुमिरन के गीत का संदेश है ।
होली के परंपरागत गीतों में महादेव और कृष्ण – राधा की टोली का कुछ अलग अंदाज है। इस अंदाज में ‘तू-तू न रहे, मैं-मैं न रहूँ’ के भाव का दर्शन इस होली गीत में व्यक्त है-
‘बृज में हरि होरी मचाई
इतसे निकली नवल राधिका
उतसे कुंवर कन्हाई
खेलत फाग परस पर हिलमिली
सोभा बरनी न जाई
घरे-घरे बाजत बधाई ।
वृज में हरि होरी मचाई।।
बाजत ढोल मृदंग साल
डफ आउ मुरली सहनाई
उड़त गुलाल लाल भये बादर
रहत सकल नभ छाई
लाल मेघवा घेरी आई
वृज में हरि होरी मचाई।।
खेलत गेंद गिरे जमुना में
के मोरा गेंद चोराई,
डाल डालि अंगिया बीच ढूंढो
एक गए दोउ पाई
लाल माटी चोरी लगाई
वृज में हरि होरी मचाई।।
अर्थात्
वृंदावन में श्रीकृष्ण ने होली की धूम मचा रखी है। एक ओर से सखियों के संग राधा निकली है, तो दूसरी ओर रसिया श्री कृष्ण निकले हैं, आपस में होली खेल रहे हैं। घर-घर में बधाई दी जा रही हैं, वृंदावन में कृष्ण होली खेल रहे हैं। मंडली में ढोल, मृदंग, साल, डफ, मुरली और शहनाई बज रही है, इससे आकाश के बादल लाल हो गये हैं।
होली गीतों में खेलते समय गेंद यमुना में गिर जाता है, तो नटखट नंदलाल गोली की कंचकी में हाथ डाला, तो एक गेंद की जगह दो मिल गये ।
होली रास रंग से भरा उत्सव है! परंपरागत होली गीतों में आदमी तो आदमी ठहरा, भगवान के साथ ठिठोली के एक से एक गीत हैं, लेकिन इस गीत के गीतकार गोपीचन्द को माना जाता है।
प्रायः होली के परंपरागत गीतों में किसी गीतकार का नाम नहीं होता, लेकिन इस गीत में नाम भी है और भगवान राम और लक्ष्मण के साथ हँसी-ठिठोली भी है
हो! हँसी-हँसी पुछथीन
जनकपुर के नारी
राउर नाम राम किन राखे
लालन अर्थ बिचारी
सबमें रम्मे सोई राम कहावै
रमहिंयो बहिन महतारी
कहो सच अवध बिहारी ।।
छोटी-छबीली रसीली बड़ी हा
तुम सब अभी कुंआरी
जानत हैं इस बातन कैस
कौन पुरुष संगआरी
कियो तुम राजदुलारी।।
गारी गुड़ सुनत सिर नाई
सखी सब लाज के मारी
गोपीचन्द परसपर हँसी-हँसी
हो मुद मंगलकारी ।
लगे सब सरहज सारी ।।
अर्थात्
भगवान श्री राम, लक्ष्मण जनकपुर गये हैं। जनकपुर की नारी हँसकर प्रश्न करती हैं कि आपका नाम राम किसने रखा है। इसका अर्थ बतावें? राम तो सबों के साथ हैं, बहन और माँ के भी साथ। यह रहस्य बतावें अवध बिहारी ।
तुम सब छोटी हो, छबीली हो, आखिर रस की बात जानती कैसे हो, किस पुरुष के साथ दोस्ती हैं, यह बताओ राजदुलारी रहस्यमय गारी सिर झुकाकर सुनती रही सखी सब लाज के साथ। यह सब ठिठोली साली और सरहज के साथ हुई।
होली के परंपरागत गीतों में पति-पत्नी से जुड़े कई गीत हैं, लेकिन इस लोकगीत का अलग अंदाज है-
अली रे, मैं पिया संग सोई
अली मैं पिया संग सोई
सुतल रहली रंग महल में,
पिया के गले लपटायो ?
टूट गयो लाखन के हरवा
चिहुँवी उठे धानी रोई पलंग पर,
चारों ओर खोज पलंग पर
चहुँओर ढूंढे पलंग पर
अली रे मैं पिया संग
सोई-पिया गले लपटायो ।
अर्थात्
हे सखि, मैं अपने प्रिय के साथ सो रही थी, रंग महल में प्रिय के गले में लिपटकर सोई थी। मेरी लाख रुपये की हार टूट गयी। प्रिया अचकचाकर उठी और पलंग पर ही रोने लगी और वहीं खोजने लगी।
स्वतंत्रता सेनानियों पर कई होली गीत गाये गये हैं।
बंगला में उड़त अबीर
हरे लाल बंगला में उड़त अबीर होऽ
राजा कुंअर सिंह तेलवा बहादुर
बंगला में उडत अबीर….
अर्थात
स्वतंत्रता सेनानी राजा कुंअर सिंह के बंगले में होली हो रही है। रंग-गुलाल उड़ रहे हैं।
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी मगध और बिहार के लोगों के मन में बसे हैं। गाँधी जी से जुड़े कई होली गीत हैं। इस होली के गीत में एक तरह से पुनर्जीवन की बात है।
ऐ गाँधी बाबा फिर से तू अइहँऽ
भारत माता के गोद में,
अपने भी अइहँऽ, नेहरू
पटेल जी के लइहँऽ
संगवा में ये अनुहार
अहो सुभाष चन्दर बोस
ऐ गाँधी बाबा फिर से तू… ।
लोकभाषा में स्वतंत्रता सेनानी और नेताओं पर अनेक होली गीत गाये जाते हैं। लोकगायक कहता है कि गाँधी जी भारत माता की गोद में फिर जन्म लेना और अपने साथ नेहरू, पटेल और सुभाष चन्द्र बोस को भी लेते आना।
सदा अनंदा रहे यही द्वारे
मोहन खेले होरी हो
एकबार खेले दोबर कन्हइया
तेवर राधा गोरी हो
कृष्ण पेम्टा मारे, झूले राधा प्यारी हो
श्री सदा अनंदा रहे यही द्वारे, मोहन खेले।
होली हो।
घर-घर घूमकर जब गाने वाली मंडली घर से लौटती है, तब यह गीत गाया जाता है। इस द्वार पर सदा आनंद बना रहे और मोहन होली खेलते रहें।
परंपरागत होली गीतों के अलावे हिन्दी और मगही के कवियों ने वसंत के बहाने होली गीत लिखे हैं। वसंत का होली के साथ खास रिश्ता है। हिन्दी के मूर्धन्य कवि रामदयाल पांडे की कविता-
पीकी पुकारती रही, पुकारता धरा-गगन
मगर कभी रूके नहीं, वसंत के चपल चरण ।
मगही कवि जयराम सिंह प्रकृति और प्रेम के कवि हैं। इनकी कविता-
आमा के मोर राजा वसंत के,
कुहुक- कुहुक कोयलिया बोलवे केतके
हवा बहे फाटा तरह-तरह गंध के
स्वागत में दुल्हा के भौरा गुंजार दे।
में ई वसंत बहार तू तनि निहार ले
धरती अइसन तू भी सोलहो सिंगार लें। अर्थात्
आम के छोटे फल लग गये हैं। राजा वसंत के कारण कोयल पुकारती है। अपने साथ संग साथी को हवा घी में-घी में प्रवाह से सुगंधित भौरा कर रहा है। तब गायक नायिका से निवेदन करता है कि तू भी वसंत के जैसा सोलह श्रृंगार कर लो।

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