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जिले का एक मात्र उद्योग बंद चीनी मिल को कबाड़ में ले जाने की कबायद शुरू – नवादा |

जिले का एक मात्र उद्योग सह पड़ोसी पांच जिले के किसानों को आर्थिक समृद्धि देने वाले पिछले 30 वर्षों से बंद वारिसलीगंज चीनी मिल के कल पुर्जाे को कबाड़ में बिक्री के लिए प्राइवेट कंपनी द्वारा कटाई का कार्य शुरू कर दिया गया है।
इस बाबत यशस्वी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के आनंद जायसवाल के नेतृत्व में सोमवार को मिल के अंदर पूजा पाठ बाद बड़ी-बड़ी मशीनों की कटनी गैस कटर से शुरू किया गया।
इस बाबत श्री जायसवाल ने बताया कि मिल के सभी मशीने पुराने जमाने की है, जो अब किसी काम में उपयोग लायक नहीं है। फलतः वियाडा से मेरी कम्पनी को बिहार के तीन मिल क्रमशः बनमंखी, गोरौल तथा वारिसलीगंज को स्क्रेपर के रूप में टेंडर लिया गया है। उन्होंने बताया कि अनुमानतः दो से तीन माह के भीतर सम्पूर्ण मिल की मशीनों की कटाई कर अन्यत्र बिक्री के लिए ले जाया जाएगा।
इस बाबत ब्राह्मण सुबोध चंद्र पांडेय ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ मिल को स्क्रेपर बनाने को लेकर भगवान विष्वकर्मा की पूजा अर्चना किया। मौके पर स्क्रेपर कंपनी के सदस्यों के अलावा मिल की परिसम्पत्तियों की रखवाली करने वाले पहरेदार उपस्थित थे।
मौके पर वृद्ध पहरेदार रामचंद्र यादव ने भावुक होकर कहा कि एक समय था, जब कोई ब्राह्मण मिल स्थापना को ले शिलान्यास पूजा करवाये होंगे। आज का दिन क्षेत्र के लिए अति दुर्भाग्यपूर्ण है, क्योंकि जिले का एक मात्र उद्योग जिसमें क्षेत्र समेत देश के कई राज्यो के एक हज़ार से अधिक कामगार कार्य करते थे, वह यहां से विदा हो रहा है। मिल का उखड़ना किसानों के लिए काफी दुखदायी है। मौके पर उपस्थित लोगों ने मिल की इस स्थिति के लिए तत्कालीन एवं वर्तमान सरकार को कोष रहे थे। आजादी से पूर्व स्थापित हुई थी वारिसलीगंज चीनी मिल देश की आजादी से पहले वर्ष 1939 में गया के एक व्यापारी रामचंद्र प्रसाद द्वारा वारिसलीगंज क्षेत्र के किसानों की मेहनत देखकर चीनी मिल स्थापित गया था, लेकिन कुछ घरेलू विवाद के कारण उक्त व्यापारी को चीनी मिल को बेचना पड़ा और पंजाब के करमचंद थापर नामक व्यापारी जो गोपालगंज में चीनी मिल खोलने के लिए जमीन खोज रहा था। जब वहां जमीन विवाद के कारण चीनी मिल खोलने में काफी दिक्कत हो रही थी, तब उद्योगपति ने बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ श्रीकृष्ण सिंह को उद्योग लगाने में आ रही समस्या के बारे में जानकारी दी, जिसपर तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ सिंह के निर्देशानुसार वारिसलीगंज में बंद पड़े चीनी मिल देखने को कहा, जिसे देखने के बाद तुरंत 1950 में थापर परिवार के द्वारा चीनी मिल चालू किया गया। थापर ने चीनी मिल का नामकरण अपनी पत्नी मोहनी के नाम पर मोहनी सुगर मिल रखा। साहित्यकार राम प्रसाद सिंह रत्नाकर बताते हैं कि वर्ष 1950 से लगातार वारिसलीगंज चीनी मिल करमचंद थापर के नेतृत्व में अच्छी मुनाफा कमाती रही। यही कारण था कि उस समय श्रमिक को मजदूरी व ईख उत्पादक किसानों को गन्ना मूल्य का भुगतान में किसी प्रकार की दिक्कत नहीं थी, जिस कारण क्षेत्र के किसान मज़दूरों में आर्थिक समृद्धि एवं खुशहाली थी, लेकिन वर्ष 1981 में सरकार ने चीनी मिल को अधिग्रहण कर चीनी निगम को सौंप दिया। तब से मिल की स्थिति बिगड़ने लगी और वर्ष 1993 में तत्कालीन लालू प्रसाद की सरकार द्वारा चीनी मिल से घाटा बता कर बंद करवा दिया गया।
मिल प्रबंधन के पास बाकी है आधा दर्जन पहरेदार की मजदूरी क्षेत्र के किसान-मजदूरों की खुशहाली का राज करीब तीन दशक से सरकारी उपेक्षा के कारण बंद वारिसलीगंज चीनी मिल की परिसम्पत्तियों की रखवाली करने वाले आधा दर्जन पहरेदारों की मजदूरी पिछले 10 वर्षों से मिल प्रबंधन के पास बकाया है। मिल के पहरेदार अपने घर के नमक सत्तू खाकर भीषण गर्मी, बरसात एवं ठंड की परवाह किये बैगर शिफ्ट में मिल की भीतरी व बाहरी कल पुर्जाे एवं अन्य संपत्तियों की रखवाली करते रहे। उन्हें आशा थी कि आज नहीं तो कल मेरा मज़दूरी जरूर मिलेगी, परंतु सोमवार को जब मिल के कल पुर्जाे को स्क्रेपर बनाने के लिए ठेकेदार द्वारा कटनी शुरू किया गया, तब पहरेदारों में आक्रोश पनपने लगा। पहरेदारों ने मिल पहुंचे ठेकेदार प्रतिनिधि को चेतावनी भरे लहजे में कहा कि हमलोगों की 10 वर्षों से मजदुरी प्रबंधन के पास बाकी है, पहले मजदुरी का भुगतान करवाइए तब हमलोग मिल की मशीनों की कटनी होने देंगे। ठेकेदार प्रतिनिधि ने वियाडा के अधिकारी से बात कर मजदूरी भुगतान करवाने का पहल करने का आश्वासन दिया है। जानकारी के अनुसार मिल बंद होने के बाद समयांतराल सभी कर्मी एवं पहरेदार मिल से सेवा निवृत हो गए, तब खुद दैनिक मज़दूरी पर कार्य करने वाले लिपिक द्वारा क्षेत्र के कुछ गरीबो को दैनिक मजदुरी पर मिल की परिसंपत्तियों की रखवाली के लिए करीब आधा दर्जन पहरेदारों को काम पर रखा, जो शिफ्ट वाइज पहरेदारी का काम करने लगे, परंतु उन्हें आज तक मजदुरी नहीं मिली है। मजदूरों का कहना है कि पहले हमलोगों की मजदूरी का भुगतान करो तब मिल को उखाड़ो।
वर्तमान समय में दैनिक मजदुरी पर कार्यरत मजदूरों में रामचंद्र यादव, हरदेव तांती, इम्तेयाज अंसारी, मुकेश कुमार, जितेंद्र यादव तथा राम विलास सिंह का नाम शामिल हैं।

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