आज भी जहां शादी के बाद बिना दुल्हन के ही लौट आती है बारात, जान के हो जाएंगे हैरान …. – नवादा |

रवीन्द्र नाथ भैया |
जिले के नरहट प्रखंड क्षेत्र के बेरौटा गांव में सैकड़ों वर्षों से एक अनोखी परम्परा निभायी जा रही है, जिसे छोड़ पाने या बदल पाने का हौसला वर्तमान पीढ़ी में भी नहीं दिखता।
बेरौटा गांव के श्रोत्रिय ब्राह्मण समाज के लोग पौराणिक मान्यताओं के कारण आज भी शादी के बाद बिना दुल्हन के ही बारात ले कर लौट आते हैं। इस परम्परा के निर्वहन के क्रम में दुल्हन के बिना बारात जरूर लौट आती है, लेकिन शादी के बाद की कोहबर आदि जैसी कई परम्पराओं को निभाने के लिए दुल्हा ही दुल्हन के घर पर रुक जाता है। एक तयशुदा समय के बाद दुल्हा अपने घर लौट आता है लेकिन एक सम्वत गुजर जाने के बाद दोबारा शुभ मुहुर्त निकलने पर लगभग पूरी शादी जैसे ही रिवाज और रस्मों को पूरा कर दुल्हन की विदाई करायी जाती है। तब जा कर दुल्हन का ससुराल आगमन हो पाता है।
ढाई-तीन सौ वर्षों से निभायी जा रही परंपरा:-
बेरौटा गांव में श्रोत्रिय ब्राह्मण समाज के 15 घर हैं। इनकी आबादी 150 के आसपास है। सभी एक ही वंशज से सम्बद्ध हैं।
गांव के प्रतिष्ठित व्यक्ति सह कारोबारी सुनील पांडेय कहते हैं कि हमारे समाज की परम्परा के मुताबिक शादी के बाद दुल्हन मायके से ससुराल नहीं आती है। अभी इसी मई माह में बेटे सौरभ पांडेय की शादी की है, लेकिन परम्परानुसार दुल्हन अपने मायके में ही रह गयी है। शादी के बाद सम्वत आदि बीत जाने बाद ही शुभ मुहूर्त में दुल्हन की विदाई होती है और उसके कदम ससुराल में पड़ते हैं। सुनील कहते हैं कि किवंदति के अनुसार लगभग ढाई-तीन सौ वर्षों से यह परम्परा निभायी जा रही है।
वैसे कोई पौराणिक साक्ष्य तो नहीं है लेकिन बुजुर्गों से सुनी-सुनायी बातों के मुताबिक समाज की सामान्य परम्परा के तहत दुल्हन की विदाई कराने पर किसी को जान गंवानी पड़ी थी। इसलिए लोगों ने इस रिवाज को निभाना बंद कर दिया।
सौ वर्ष पूर्व शुरू हुई थी विदाई की परंपरा, पर हुई अनहोनी:-
सुनील पांडेय कहते हैं कि लगभग एक सौ वर्ष पूर्व उनके दादा जी ने परम्परा से हट कर दुल्हन की विदाई कराने का प्रयास किया था लेकिन फिर से कोई गम की घटना घटित हो गयी जिस कारण दोबारा किसी में परम्परा से हट कर ऐसा कुछ करने का हौसला नहीं बचा।
समाज के शिक्षक प्रेम कुमार, प्रभात पांडेय, सुधीर पांडेय, किसान उपेन्द्र पांडेय, कारोबारी पंकज पांडेय, अरविंद पांडेय आदि भी कहते हैं कि पूर्व में हुई अनहोनी घटनाओं बाद से भयवश यह पौराणिक व रूढ़िवादी परम्परा किसी के द्वारा भी तोड़ी नहीं जा रही है।
ग्रामीणों ने बताया कि पूर्व में बेरौटा से बेटियों की शादी के बाद भी यह परम्परा निभायी जाती थी। यानी बेटियां भी शादी के बाद अपने ससुराल नहीं जाती थी लेकिन लगभग तीस वर्ष पूर्व शादी के बाद बेटी की विदाई की गयी तो दोनों घरों में सब कुछ सामान्य रह जाने पर बेटियों की विदाई की परम्परा शादी के साथ ही निभायी जाने लगी।
बता दें 20 वर्षों पूर्व तक इसी प्रकार की परंपरा का निर्वाह अकबरपुर प्रखंड क्षेत्र के कुसुम्भार गांव में भी था. शादी के बाद बेटी की विदाई नहीं की जाती थी.
लेकिन अब इस परंपरा को छोड़ बेटी की विदाई आरंभ हो गयी है.