
रवीन्द्र नाथ भैया |
जिले के नरहट प्रखण्ड के मीनापुर पत्तलबिगहा पथ पर पाण्डेचक गांव के आस पास मनाही के बावजूद किसान खेत में पराली जला रहें हैं। इससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। पराली जलाने पर मानव जीवन में सांस लेने की समस्या, आखों में जलन, गले की समस्या प्रमुख है। साथ ही मृदा में ऊर्वरा शक्ति को क्षति पहुंचती है। जमीन में पाए जाने वाले लाभकारी मित्र कीट का सफाया हो जाता है।
किसानों के बीच ऐसी मान्यता है कि फसलों के अवशेष को खेत में जलने से खर पतवार एवं कीड़ो को समाप्त किया जा सकता है। जबकि, हकीकत यह है कि खेत में पराली जलाने से ज्यादा नुकसान होता है।
इस सम्बंध में बीएओ राज बिहारी ने बताया कि किसानों के बीच धारणा को समाप्त करने के लिए कृषि प्राधोगिकी प्रबंध अभिकरण द्वारा प्रखण्ड के सभी पंचायतों में रबी जागरूकता रथ एवं किसानों के साथ बैठक कर जागरूक किया जा रहा है। पराली जलाने की प्रथा को तोड़ने के लिए विभाग द्वारा अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
बीएओ ने किसानों से आग्रह किया है कि खेतों में पराली नही जलाएं। इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति समाप्त हो जाती है। पर्यावरण को भारी नुकसान पहुचता है। खेती में सहायक मित्र कीट को भी नुकसान पहुचता है। किसान भाईयों को पराली का उपयोग चारा या कम्पोस्ट बनाने में करना चाहिए।
बीएओ ने कहा कि सम्बन्धित पंचायत के किसान सलाहकार को भेज कर इलाके के किसानों को जागरूक किया जाएगा। ताकि किसान पराली जलाने से होने वाले नुकसान के प्रति जागरूक हो सकें।