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जिला स्थापना के स्वर्ण जयंती वर्ष में भी नहीं याद आये शत्रुध्नशरण सिंह -नवादा |

जिला प्रशासन ने भी नहीं निभाई औपचारिकता

रवीन्द्र नाथ भैया |

26 जनवरी 23 को जिला स्थापना के 50 वर्ष पूरे हुए। इस क्रम में जिलावासियों ने कई उतार चढ़ाव देखे। कभी जिला स्थापना काफी धूमधाम के साथ मनाया जाता था लेकिन स्वर्ण जयंती वर्ष में सन्नाटा छाया रहा। ऐसा जिला प्रशासन की उदासीनता के कारण हुआ। और तो और संस्थापक तक याद नहीं आये।
दूसरी ओर 26 जनवरी 2023 औरंगाबाद जिले की स्थापना का के भी 50 साल पूरे हुए। दोनों का उद्घाटन एक ही दिन हुआ था। औरंगाबाद में बिहार दिवस 22 मार्च 2023 तक के कार्यक्रम निर्धारित है। समाज के विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिनिधित्व करनेवालों को भागीदार बनाया गया है।
स्थापना दिवस के दिन सांसद और विभिन्न क्षेत्र के 51 लोगों के जरिए पौधे लगाए गए। पौधे लगानेवालों के नाम उल्लेखित किए गए। रात्रि में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिलाधिकारी और जनप्रतिनिधि समेत विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने सामूहिक दीपक जलाया।
यही नहीं, बिहार दिवस के दिन तक के लिए अनेक कार्यक्रम निर्धारित किया गया है। इसमें सरकार, प्रशासन और प्रबुद्ध नागरिकों की सहभागिता निर्धारित की गई है। जन भागीदारी सुनिश्चित कराने के लिए एक हेल्प डेस्क बनाया गया है ।दूसरी तरफ, नवादा में गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में स्थापना दिवस के कार्यक्रम को जोड़कर औपचारिकता निभाई गई।
वैसे, हरिश्चंद्र स्टेडियम में झंडोतोलन के अवसर पर जिले के प्रभारी मंत्री समीर कुमार महासेठ ने 50 साल पूरे होने पर बधाई जरूर दी। लेकिन नवादा के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वालों का नाम लेना तक भूल गए। यही नही, प्रशासनिक स्तर पर गार्ड से लेकर अधिकारियों तक को मंत्री के जरिए सम्मानित किया गया। जबकि जिले में विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करनेवालों को कोई तवज्जो नहीं दिया गया।
5 सालों से स्मारिका का नहीं हो रहा प्रकाशन:-
वैसे नवादा के प्रति सरकार और प्रशासन का रवैया उदासीन रहा है। 50 साल पूरा होने के बाद की उदासीनता इसका उदाहरण है। विडंबना कि जिला बनाने के लिए तत्कालीन विधायक सह मंत्री स्व शत्रुघ्न शरण सिंह को तत्कालीन सरकार से लड़ाई करनी पड़ी थी। अब जब जिला बन गया है, फिर भी लोगों का नजरिया नही बदला है।
एक पूर्व स्थापना दिवस पर तीन दिवसीय कार्यक्रम शुरू हुआ था। स्मारिका प्रकाशित किया जाता था।
कई सामाजिक और विकास से संबंधित कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे। बच्चे, महिलाएं और युवाओं को लेकर कई तरह का कार्यक्रम आयोजित किए जाता था। पिछले पांच सालों से अधिक समय से स्मारिका का प्रकाशन तक नहीं कराया जा रहा है।
अब तो धीरे धीरे कार्यक्रम का स्वरूप भी छोटा होने लगा है । स्वर्ण जयंती के अवसर पर विरानगी उसी उदासीनता की एक कड़ी है।
वरिष्ठ पत्रकार सह साहित्यकार राम रतन प्रसाद सिंह रत्नाकर कहते हैं कि स्वर्ण जयंती जिले के इतिहास के लिए मील का पत्थर होता है। लेकिन सरकार, प्रशासन और प्रतिनिधियों को इसकी कोई चिंता नहीं है।
26 जनवरी 1973 को नवादा और औरंगाबाद बना था जिला:-
21 नवंबर 1972 को बिहार मंत्री परिषद ने गया जिले को नवादा, गया और औरंगाबाद के तीन जिलों में पुनर्गठित करने का निर्णय लिया था। 26 जनवरी 1973 को गया से अलग नवादा और औरंगाबाद को विधिवत जिला का दर्जा दिया गया। नवादा के पहले जिलाधिकारी के रूप में नरेंद्र पाल सिंह ने पदभार ग्रहण किया। नवादा को जिला बनाने में हिसुआ के तत्कालीन विधायक सह मंत्री शत्रुघ्न शरण सिंह का अहम योगदान रहा।
स्थापना दिवस पर डीएम व एसपी रहे नदारद:-
स्थापना दिवस के अवसर पर नगर भवन में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में जनप्रतिनिधि और वरीय पदाधिकारी की भागीदारी नहीं दिखी। जबकि जिले में सांसद के अलावा पांच विधायक, दो विधान पार्षद, जिला परिषद और नगर परिषद के मुख्य और उप मुख्य पार्षद हैं। उद्घाटन समारोह में डीएम और एसपी की गैर मौजूदगी भी लोगों को खली। कार्यक्रम का उदघाटन एडीएम ने किया। मौके पर एसडीओ मौजूद थे। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि स्वर्ण जयंती वर्ष जिलावासियों के लिए उदासीनता लेकर आया।

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