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बिस्कोमान में लग गया ताला,उर्वरक के लिए किसान परेशान नवादा

जिले के वारिसलीगंज प्रखंड के किसानों ने गेहूं फसल लगाने की शुरुआत कर दी है। फसल लगाने के समय जड़ों में डाले जाने वाला डीएपी तो बिस्कोमान में पहले ही समाप्त हो गया था। शनिवार को किसानों को उपलब्ध कराने के लिए आया यूरिया भी समाप्त हो गया, जिस कारण बिस्कोमान में ताला लगाकर कर्मी मौके से फरार हो गए और किसान लाइन में खड़ी इंतजार करते रहे।
बता दें कि मजदूरों के पलायन के बाद धान कटनी की गति काफी धीमी है, बावजूद धान कट चुके खेतों में किसानों द्वारा रबी फसल की बुआई की जा रही है। रबी फसल के लिए किसानों को डीएपी की आवश्यकता है, जिसके लिए सरकार द्वारा स्थापित बिस्कोमान में डीएपी और यूरिया उपलब्ध कराई जाती है, लेकिन कृषि प्रधान क्षेत्र वारिसलीगंज के हजारों किसानों के बीच वितरित करने के लिए मात्र कुछ बैग डीएपी और यूरिया उपलब्ध कराई गई।
बिस्कोमान मैनेजर दिलीप कुमार ने बताया कि इस वर्ष रबी फसल में डालने के लिए मात्र 300 बोरी डीएपी, 300 बोरी एपीएस और 12 सौ बोरी यूरिया उपलब्ध कराई गई थी, जबकि क्षेत्र के दर्जनों किसान ऐसे हैं, जिन्हें दर्जनों बोरी डीएपी और यूरिया की आवश्यकता है, इस स्थिति में लाचार किसानों को बाजार में तैयार हो रहे नकली डीएपी और महंगी यूरिया खरीद कर खेतों में डालने को विवश होना पड़ रहा है।
उर्वरक नहीं मिलने से नाराज किसानों के द्वारा बिस्कोमान कर्मी के साथ गाली गलौज व मारपीट की घटना तक घटती रही है। शनिवार को भी उर्वरक समाप्त होने की सूचना बाद किसानों द्वारा बिस्कोमान मैनेजर दिलीप कुमार के साथ अभद्रता की गई, इसकी जानकारी पीड़ित मैनेजर के द्वारा दी गई।
सोलह पैक्स में मात्र एक पैक्स के द्वारा लिया गया उर्वरक बेचने का लाइसेंस:-
किसानों के हितों की रक्षा करने के लिए प्रत्येक पंचायत में एक पैक्स अध्यक्ष जनता के द्वारा निर्वाचित हैं, लेकिन प्रखंड क्षेत्र के 15 उदासीन पैक्स अध्यक्षों के द्वारा कृषि विभाग के द्वारा निर्गत उर्वरक बेचने का लाइसेंस नहीं लिया गया है, जिस कारण सिर्फ अपसड़ पैक्स अध्यक्ष के द्वारा किसानों को उर्वरक उपलब्ध कराई जा रही है। शेष पैक्स अध्यक्ष को किसानों को हो रही परेशानी से कोई लेना देना नहीं है।
कृषि अधिकारियों से मिली जानकारी के अनुसार अगर सभी पैक्स के द्वारा उर्वरक बेचने का लाइसेंस ले लिया जाता तो जिले में उर्वरक के आवंटन में वृद्धि होती। शुरुआत में पैक्स अध्यक्ष लाइसेंस लेना चाहते थे, लेकिन बीएससी एग्रीकल्चर में पास होने की बात कहकर लाइसेंस देने से मना कर दिया गया। हालांकि कुछ दिनों बाद ही जिलाधिकारी द्वारा एग्रीकल्चर पास होने की व्यवस्था को निरस्त कर पैक्स अध्यक्ष को उर्वरक लाइसेंस देने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी, लेकिन तब दूसरा कोई भी पैक्स अध्यक्ष किसानों के लिए आवश्यक उर्वरक का लाइसेंस लेना जरूरी नहीं समझा।
बताते हैं कि अधिकारी अगर चाहते तो पैक्स को लाइसेंस लेना जरूरी कर सकते है, लेकिन अधिकारी भी किसानों की इन समस्याओं को दूर करने के लिए तत्पर नहीं दिख रहे हैं। वारिसलीगंज में बड़े पैमाने पर होती है नकली डीएपी खाद का निर्माण:- वारिसलीगंज में नकली डीएपी उर्वरक का निर्माण का कार्य बड़े पैमाने पर किया जाता है, जिसे प्रखंड क्षेत्र के साथ ही पड़ोसी प्रखंडों सहित नालंदा, शेखपुरा जिले में भेजी जाती है। नकली डीएपी निर्माण कर बेचने की सूचना पर पिछले वर्ष धान रोपनी के समय ही अधिकारियो द्वारा एक नकली डीएपी फैक्ट्री पर छापेमारी कर नकली उर्वरक सहित बड़ी मात्रा में नकली खाद बनाने में उपयोग आने वाला बैग तथा बोरा सिलाई मशीन आदि बरामद किया गया था, जो मात्र बानगी भर है।
जानकारों के अनुसार बाजार में बिक रहे डीएपी उर्वरकों में से आधे से अधिक नकली है। नकली उर्वरक बिकने की सूचना बाद भी संबंधित अधिकारियों द्वारा नकली डीएपी बनाने वालों व बिक्रेताओं के विरुद्ध किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की जाती है, जिस कारण लाचार और कुछ जागरूक किसान डीएपी के स्थान पर डेढ़ गुना अधिक कीमत देकर फॉस्फेट और यूरिया धान रोपनी सहित रबी फसल के जड़ों में डालना ज्यादा लाभकर समझते हैं। मकनपुर ग्रामीण किसान कुंदन सिंह, मुरारी कुमार, अरविंद सिंह, सुरेंद्र सिंह तथा चैनपुरा ग्रामीण रेखा सिंह आदि कहते हैं कि जब-जब किसानों को उर्वरक की आवश्यकता पड़ती है तब विस्कोमान में खाद समाप्त हो जाता है। फलस्वरूप किसानों को बाजार की दुकानों से मनमाने कीमत पर नकली खाद खरीदना पड़ता है।
कमोबेश इसी प्रकार की स्थिति पूरे जिले की है. ऐसे में गेहूं के उत्पादन पर असर पड़ने की संभावना है.

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