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मजदूरों के अभाव में मनरेगा के कार्य बाधित, खेती पर भी आफत – नवादा |

रवीन्द्र नाथ भैया |

जिले में मजदूरों के अभाव में मनरेगा और कृषि के कार्य बाधित बुरी तरह से बाधित हो रहे हैं। कृषि कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं।
जिले में मजदूरी की स्थिति अच्छी नहीं रहने से मजदूरों का मनोबल टूट रहा है। मजदूरी की खींचतान में मजदूर दूसरे प्रदेशों के लिए पलायन कर रहे हैं। एक मोटे अनुमान के मुताबिक जिले के 40 हजार के आसपास मजूदर दूसरे प्रदेशों के लिए पलायन को बाध्य हैं।
विभागीय प्रयास के दावे तो बढ़ा-चढ़ा कर किए जा रहे हैं, लेकिन हालात यह है कि यह सब कुछ नाकाफी साबित हो रहे हैं। मनरेगा से बमुश्किल 10 से 12 हजार मजदूर ही जुड़े हैं। इनके जॉब कार्ड बने हुए जरूर हैं, लेकिन यह भी पीआरएस के पास ही पड़े रहते हैं। ऐसे में मजदूरों में निराशा की स्थिति बनी रहती है।
मनरेगा से जुड़ी एजेंसी और कार्य कराने वालों के इरादे मजदूरों पर भारी पड़ रहे हैं, इस कारण बड़ी बाधा बनी हुई है।
मनरेगा के पीओ और पीआरएस भले यह कहते रहें कि मजदूरों का अभाव है जबकि स्थिति यह है कि मजदूरों को काम पर रखने में दिलचस्पी ही नहीं दिखाई जाती है।
कई मजदूरों की शिकायत है कि उनके जॉब कार्ड या तो बने नहीं और बने भी तो उन्हें दिए ही नहीं गए। मजदूरी करा लेने के बाद भी कई-कई दिनों तक टहलाया जाता है जिसे झेल पाना कठिन होता है।
जहां तक बात रही खेती-किसानी की तो यहां न्यूनतम मजदूरी देने में बाधा रहने पर मजदूर काम करने से कतराते हैं जबकि सही मजदूरी मिल पाने की स्थिति में अब भी ग्रामीण क्षेत्र में मजदूर सहजता से उपलब्ध हैं। इन परिस्थितियों के कारण मजदूरों को लगता है कि स्थायी आमदनी सुनिश्चित नहीं हो पा रही है। ऐसे में मजबूर हो कर मजदूर दूसरे प्रदेशों को पलायन कर जाते हैं।
मजदूरों की व्यथा:-
स्थानीय स्तर पर काम के अभाव में मजदूरों का पलायन होता है। मजदूरों को काम की गारंटी देने वाली सरकार की बहुमुखी योजना मनरेगा विफल साबित हुई है। यह मजदूरों के साथ धोखा है। ऐसे में पेट की भूख शांत करने के लिए पलायन करना हमारी मजबूरी है। – इंद्रदेव मांझी, मजदूर, लोहसिंहानी, कौआकोल
मनरेगा का जॉब कार्ड बना है मगर आज तक काम नहीं मिला। गेहूं की कटाई चल रही है इसके लिए भी समुचित मजदूरी का काम नहीं मिल पा रहा है। गांव में यूं बैठकर समय गुजारना भारी पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में दूसरे प्रदेश जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। – महेंद्र राम, मजदूर, भीखमपुर, रोह
अव्वल तो मनरेगा में काम नहीं मिलता और काम मिल गया तो मनरेगा में मजदूरी काफी कम मिलती है। कम से कम 350 रुपये मिलने चाहिए। लेकिन स्थिति अच्छी नहीं। खेती-किसानी में भी अकुशल मजदूर वाला मेहनताना मिलता है। ऐसे में रोजी-रोटी विकट समस्या है। – रंजीत कुमार, मजदूर, बरबट्टा, गोविंदपुर
मनरेगा तथा सरकार की अन्य योजनाओं या खेती-बारी का काम समुचित मजदूरी पर मिल जाता तो किसी तरह काम चल जाता। पर मनरेगा में मशीन से काम कराने के कारण केवल खेती से पेट नहीं चलाया जा सकता। लाचारी में दूसरे प्रदेशों में काम करने के लिए विवशता है। – विक्की रविदास, मजदूर, जगजीवन नगर, रजौली

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