24 वर्षों से रोजा रखते आ रहे हैं मुरली मनोहर श्रीवास्तव आपसी मिल्लत की मिसाल हैं – पटना |

रवि रंजन |
देश मे जहां आपसी मिल्लत को प्रभावित करने के लिए कुछ असामाजिक तत्व प्रबल हैं वहीं बिहार के लेखक मुरली मनोहर श्रीवास्तव पिछले 24 सालों से रोजा रखकर आपसी मिल्लत की मिसाल कायम कर रहे हैं।
रमजान को कुरान पाक का महीना माना जाता है। मुस्लिम समुदाय के लोग पूरे महीने भर रोजा रखते हैं। लेकिन कई हिंदू भी बड़े प्यार से रोजा रखते हैं। आज हम ऐसे ही एक रोजेदार के बारे में बात कर रहे हैं। बिहार के बक्सर जिले के डुमरांव के रहने वाले लेखक सह वरिष्ठ पत्रकार मुरली मनोहर श्रीवास्तव वर्तमान में पटना में रहते हैं, जो पिछले 24 वर्षों से रोजा रखते आ रहे हैं। हिंदु धर्म के प्रति आस्था रखने वाले इस भक्त की खासियत ये हैं कि नवरात्रि, छठ से लेकर रोजा तक रखते हैं। हिंदु-मुस्लिम एकता को एक परिवार और आपसी मिल्लत की मिसाल मानने वाले इस शख्स को जितनी हिंदू पर्व त्योहारों में आस्था है, उतनी ही श्रद्धा रमजान में भी है। मुरली मनोहर श्रीवास्तव हिन्दू-मुसलिम एकता की मिसाल पेश कर रहे हैं।
इन्होंने शहनाई नवाज भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां साहब पर पुस्तक लिखी है, उनके ऊपर तीन डॉक्यूमेंट्री भी बना चुके हैं। दर्जनों डॉक्यूमेंट्री बना चुके मुरली रोजा रखने के संदर्भ में बताते हैं कि रोजा करने के लिए किसी ने इन्हें कहा या दबाव नहीं बनाया बल्कि एक बार अचानक लगा कि कोई इन्हें रोजा रखने के लिए कह रहा है। मगर आज तक पता नहीं चला कि वो कौन था और अचानक से कहां चला गया। फिर क्या मुरली ने रोजा रखना शुरु कर दिया। “वीर कुंवर सिंह की प्रेमकथा” पुस्तक और इनके ऊपर नाटक भी मुरली लिख चुके हैं। इस पुस्तक में 1857 के वीर सेनानी बाबू कुंवर सिंह और धरमन बीबी के मोहब्बत और देशभक्ति को केंद्र में रखकर लिखा गया है, जो देशभक्ति और आपसी मिल्लत की मिसाल है। शहनाई नवाज भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के साथ लंबा समय गुजारने वाले मुरली मनोहर श्रीवास्तव कई बार तो रमजान के महीने में उनके पास भी पहुंचकर रोजा रखा करते थे। हां, ये बात अलग है कि तीस रोजा रख पाना अब इनके लिए मुमकिन नहीं हो पाता है, जबकि अलविदा शुक्रवार को करना कभी नहीं भूलते हैं। हलांकि कोशिश करते हैं कि किसी भी शुक्रवार को कभी न छोड़ें।
अक्सर कहते हैं जहां आस्था है वहीं भगवान है। जहां विश्वास है वहीं संपूर्ण ब्रह्मांड है। चाहे कोई भी धर्म हो लेकिन खुदा की इबादत बस यही सीखाती है कि मानवता में विश्वास रखो। हर इंसान की कदर करना सीखो। रमजान में रोजे को अरबी में सोम कहते हैं, जिसका मतलब है रुकना। रोजा यानी तमाम बुराइयों से परहेज करना। रोजे में दिन भर भूखा व प्यासा ही रहा जाता है। रोजा झूठ, हिंसा, बुराई, रिश्वत तथा अन्य तमाम गलत कामों से बचने की प्रेरणा देता है। चाहे कोई भी धर्म हो लेकिन खुदा की इबादत बस यही सीखाती है कि मानवता में विश्वास रखो।