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प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 की वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की सहयोगी स्वतंत्रता सेनानी झलकारी बाई की 192 वीं जन्मदिवस पर सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन – पश्चिम चंपारण |

बेतिया। सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857की विरांगना रानी लक्ष्मीबाई की सहयोगी झलकारी बाई की 192 वीं जयंती पर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों, बुद्धिजीवियों एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया। इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय पीस एंबेस्डर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ0 एजाज अहमद अधिवक्ता, डॉ0 सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड, डॉ0 शाहनवाज अली, डॉ0 अमित कुमार लोहिया, वरिष्ठ अधिवक्ता शंभू शरण शुक्ल, सामाजिक कार्यकर्ता नवीदूं चतुर्वेदी, पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन, डॉ0 महबूब उल रहमान एवं अल बयान ने संयुक्त रूप से श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि आज ही के दिन महान स्वतंत्रता सेनानी झलकारी बाई का जन्म 22 नवंबर 1830 हुआ था। उनका सारा जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित रहा। जब ब्रिटिश सेना के जनरल ह्यूग रोज ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक बड़ी सेना के साथ झांसी पर हमला किया था, तब वह झलकारी बाई ही थी, जिन्होंने रानी लक्ष्मीबाई को सुरक्षित निकलने में मदद की थी। इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि जब झांसी के किले को जनरल ह्यूज रोज़ की सेना द्वारा घेर लिया था, तब झलकारी बाई ने एक योजना के अनुसार, रानी लक्ष्मीबाई का भेष बदलकर किले के सामने के गेट पर सेना की एक टुकड़ी के साथ अंग्रेज़ी सेना का सामना किया, ताकि दुश्मन उनके साथ लड़ाई करते रहें और दूसरी तरफ से रानी लक्ष्मीबाई किले से सुरक्षित भाग सकें।

सब कुछ योजना के अनुसार चल रहा था और रानी लक्ष्मीबाई और झलकारी बाई किले से सुरक्षित बाहर निकल गईं और ब्रिटिश सेना देखती ही रह गई। उसके बाद झलकारीबाई ने ब्रिटिश सेना का डट कर सामना किया। झलकारीबाई ने अंग्रेजी सेना को युद्ध में उलझाए रखा। हालांकि, एक मुखबिर ने झलकारी बाई को पहचान लिया और झलकारी की पहचान उजागर करने की कोशिश की, तभी झलकारी बाई ने उसे बंदूक से गोली मार दी। ताकि, रानी लक्ष्मीबाई का सच सामने न आ सके।

आख़िरकार भीषण युद्ध के बाद, जनरल रोज और उनकी सेना ने उन्हें पकड़ लिया।

झलकारी बाई को भारी सुरक्षा के साथ एक तंबू में कैद किया गया था। हालांकि, एक मौका देखते ही झलकारी बाई रात में कैद से भाग गई। अगले दिन, जनरल ह्यूज रोज ने किले में एक भयंकर हमला किया; जहाँ उन्हें फिर झलकारी बाई से भिड़ना पड़ा। एक लंबी लड़ाई में, उनका पति वीरगति को प्राप्त हुए; जो एक कैनन-शॉट में मारे गए थे। जल्द ही, एक तोप के गोले से झलकारी बाई की भी मृत्यु हो गई और अंतिम क्षण में उद्घोष लगाया “जय भवानी”।

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