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पैक्सों की परेशानी:-चावल जमा होने की अंतिम तिथि में 18 दिन शेष – नवादा |

26 करोड़ का चावल जमा होना बाकी

रवीन्द्र नाथ भैया |

शुरूआती समय में तेजी के बाद सुस्त हुई चावल जमा कराने की रफ्तार, अबतक लक्ष्य का 87% ही जमा कराया जा सका है.
धान की बंपर खरीदारी के बाद चावल जमा कराने की रफ्तार भी अच्छी है लेकिन चावल जमा कराने की प्रक्रिया अभी भी लक्ष्य से काफी दूर है। अभी तक करीब 87% सीएमआर ही जमा हो पाया है। धान की खरीदारी पूरी होने के बाद विभिन्न समितियों और राइस मिलों के द्वारा एसएफसी को 314 करोड़ का चावल दिया जाना है। लेकिन अभी 26 करोड़ से अधिक का चावल मिलरों और पैक्स समितियों के पास ही है।
ऐसा तब है जब फरवरी माह में धान खरीद की प्रक्रिया समाप्त हो गई थी। धान खरीद पूरी होने के बाद करीब एक लाख 7 हजार एमटी चावल जमा कराने का निर्देश दिया गया था। तब से अब तक 4 महीने का समय बीत गया लेकिन अब तक करीब 93 हजार 600 एमटी चावल जमा हुआ है। अभी भी करीब साढ़े तेरह एमटी चावल जमा नहीं हो पाया है। दरअसल शुरुआत में चावल जमा कराने की प्रक्रिया काफी तेज रही लेकिन बाद के दिनों में इसकी रफ्तार सुस्त हो गई। बताया जाता है ऐसा उसना मिलों के चलते हुआ है।
फरवरी में खरीद बंद तो जमा करने में इतनी देर क्यों:-
जिले में फरवरी माह में ही धान अधिप्राप्ति का कार्य बंद कर दिया गया था और तब से खरीदे गए धान की अभी तक मिलिंग नहीं हो सकी और ना ही चावल जमा हो पाया। इस व्यवस्था से कई पैक्स की भी परेशानी बढ़ी हुई है। धान खरीदारी के बाद भी उनका सीएमआर जमा नहीं हो पाया। ऐसे पैक्स इसलिए परेशान है क्योंकि जब तक उनका सीएमआर जमा नहीं होगा तब तक एसएफसी उन्हें भुगतान नहीं करेगी। और जब तक एसएफसी से उन्हें पैसा नहीं मिलेगा तब तक सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक को क्रेडिट कैसे चुकाएंगे।
बैंक के द्वारा सीसी का ब्याज दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। धान खरीदारी के 30 दिनों के अंदर सीएमआर ले लिया जाता तो लोगों पर सूद का बोझ इतना नहीं पड़ता।
पैक्स अध्यक्ष बताते हैं कि जब फरवरी में खरीदारी पूर्ण हो गई तो इतना दिन क्यों लटकाया जा रहा है।
अरवा, उसना चावल की बाध्यता के चलते हो रही देरी:-
बताया जाता है कि ऐसा अरवा और उसना चावल की बाध्यता के चलते हो रहा है। पहले सिर्फ अरवा चावल भी जमा हो जाता था लेकिन इस बार 40% उसना चावल व 60% अरवा चावल सीएमआर के रूप में देने का निर्णय पारित किया था। चूंकि अरवा मिलों में मिलिंग उसना मिलों की तुलना में ढाई गुना तेज होती है। जबकि उसना मिलो में यह काफी स्लो होता है। यही कारण है कि अभी तक लक्ष्य के अनुसार सीएमआर जमा नहीं हो पाया है।

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