
रवीन्द्र नाथ भैया |
घर बनाने के लिए लोगों को लाल ईंट की जरूरत होती है। इसके लिए जिले के विभिन्न भागों में वैद्य व अवैध करीब 300 ईट भट्टे संचालित हो रहे हैं, लेकिन नियमों की अनदेखी के कारण हर दिन एक बड़ा उपजाऊ भू-भाग बंजर होता जा रहा है।
वर्षा आने से पहले जिले के ईंट भट्ठों पर मिट्टी का पहाड़ बनना शुरू हो गया है। जिले में 150 से अधिक जेसीबी मशीन मिट़्टी के नाम पर किसानों के खेतों की जान निकाल रही है। प्लाट दर प्लाट खेत विरान और खाई बन रहा है।
कहीं पैसे तो कहीं खेत में पानी ठहरने के लालच में किसान अपना खेत ईंट भट्ठा व्यवसायियों को सौंप रहे हैं। यद्यपि यह उपज और पर्यावरण की दृष्टि से बेहद खतरनाक है। कृषि वैज्ञानिकों की माने तो यह खेतों की हत्या करने जैसा है। ऊपजाऊ खेतों में तीन फुट से ज्यादा खोदाई जलस्तर और उपज दोनों के लिए विनाशकारी है। रिपोर्ट के अनुसार ऐसा पाया गया है कि मिट्टी काटने के बाद गड्ढा छोड़ दिया जाता है। ऐसे में उक्त भूमि खेती योग्य भी नहीं रह जाती। इससे वह बंजर जैसा हो जाता है। हर साल बंजर हो रही एक हेक्टेयर भूमि:-
ईट भट्ठेदार बताते हैं कि एक सामान्य चिमनी भट्ठे के लिए साल भर में 6500 मीट्रिक घन मीटर मिट्टी की आवश्यकता होती है। जिले में 250 रजिस्टर्ड और करीब 50 अवैध चिमनी संचालित हैं। ऐसे में हर साल करीब 25 लाख मीट्रिक घन मीटर मिट्टी का खनन होता है। जिले की अधिकांश मिट्टी ऊपजाऊ है। इसके अनुसार हर साल करीब एक हजार हेक्टेयर भूमि बंजर हो जा रही है।
घट गया धान का रकबा:- जिले में पांच साल पहले 85 हजार हेक्टयर में धान की खेती होती थी, लेकिन अब 75 हजार हेक्टेयर में धान की खेती होती है। यह आंकड़ा बंजर व बर्बाद हो रही भूमि की भयावहता दिखाने के लिए काफी है। लालच में मिट्टी कटवा रहे किसानों को पिछले कुछ सालों में वर्षा कम होने से पटवन करने में परेशानी हो रही है। ऐसे में किसान यह सोच कर मिट्टी कटवा रहे हैं कि खेत के गड्ढा हो जाने से पानी खेत में लंबे समय तक टिकेगा। कुछ किसान पैसा के लोभ में अपने खेत की मिट्टी कटवा रहे हैं। जबकि यह आत्मघाती कदम है। कृषि विज्ञानी कहते हैं कि खेत बहुत ज्यादा टीले हैं तो मिट्टी कटवाना ठीक है, लेकिन सामान्य खेतों को चार फीट तक गहरा करवाना जोखिम भरा है। इससे जमीन की उर्वरा शक्ति कमती है। इतनी खुदाई के बाद मिट्टी को उर्वर बनाने में कई साल लग जाएंगे।
लगातार गिर रहा जलस्तर:- आंकड़े बताते हैं कि मिट्टी की लगातार हो रही कटाई से हर साल हजारों एकड़ भूमि बंजर हो रही है। इससे प्रदूषण का खतरा बढ़ने के साथ-साथ जलस्तर भी गिर रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार खनन के बाद उस स्थान पर मिट्टी का दबाव कम होने से पानी ऊपर आ जाता है। इससे दूसरे स्थान का जलस्तर नीचे चला जाता है। वहीं मिट्टी के अंदर रहने वाले सूक्ष्म जीवों के नष्ट हो जाने से पर्यावरण को खतरा उत्पन्न होता है।
वैध से ज्यादा अवैध भट्ठे:- जिले में करीब 300 ईंट भट्ठे संचालित हैं। कई ऐसे भट्ठे हैं जो बगैर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से निबंधन के ही संचालित हैं। इनमें से 150 ईंट भट्ठे खनन विभाग में मिट्टी रायल्टी के लिए निबंधित हैं।
ईंट भट्ठे सरकार को मिट्टी का राजस्व देते हैं। इनके लिए कई प्रावधान है। लेकिन प्रावधानों का अनुपालन मात्र कागज पर हो रहा है। तीन फिट से अधिक गहराई में मिट्टी की खुदाई नहीं करनी है। जिले में अब भी कई बंगला ईंट भट्ठों का संचालन किया जा रहा है। जिस पर सरकार ने पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर रखा है।
कहते हैं अधिकारी:-
जिले में संचालित ईट भट्ठे पर प्रशासन की नजर है। सरकारी नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। राजस्व जमा नहीं करने वाले मालिक के खिलाफ केस दर्ज कर कार्रवाई की जा रही है। -सुमन कुमारी, खनन पदाधिकारी, नवादा: