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गेहूं का एम एस पी 2650 रुपए अविलंब करो – पश्चिम चंपारण |

सतेन्द्र पाठक |

बेतिया। बिहार राज्य किसान सभा के संयुक्त सचिव प्रभराज नारायण राव ने कहा कि आज किसानों को खेती करना घाटे के चलते संभव नहीं हो पा रहा है। किसान परेशान हैं। उनके लागत भी नहीं निकल पा रहे हैं। जबकि सरकार ने वादा किया था कि स्वामीनाथन कमीशन के अनुशंसा के आधार पर हम किसानों को फसल के लागत का डेढ़ गुना दाम देंगे। लेकिन इस साल फिर गेहूं का एमएसपी 2015 रुपए केंद्र सरकार के द्वारा निर्धारित करना किसानों को खेती से मुंह मोड़ लेने वाला फैसला है।

जबकि सच्चाई यह है कि इस बढ़ती हुई महंगाई में आज खेती के औजार इतने महंगे हो गए। सरकार नियोजित खाद की चोर बाजारी सबके सामने रहा है। बीज महंगे हो गए । श्रमिक लागत महंगे हो गए।

ऐसी स्थिति में 2650 रुपए से कम गेहूं का एमएसपी होना किसानों को घाटे में डालने का काम है। एक तरफ तो किसान विरोधी तीनों काले कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं करते हैं। दूसरी तरफ एमएसपी के लिए शीघ्र एक कमेटी के गठन की बात करते हैं। जिसमें किसानों का भी प्रतिनिधि रहेगा। लेकिन आज तक एमएसपी का निर्धारण नहीं हो सका। यह भारत सरकार के किसान विरोधी नीतियों को स्पष्ट करता है।

दूसरी तरफ खेती से भाग रहे किसानों के चलते अनाज कम पढ़ता जा रहा है और बाजार में गेहूं की कमी के चलते दाम में वृद्धि हुई तो मोदी सरकार और उनके भक्तों ने यह कहना शुरू कर दिया है कि अगर तीनों कृषि कानूनों को लागू कर दिया गया रहता। तो आज किसान फायदे में होते।

यह कह कर एक बार फिर भाजपा और मोदी सरकार किसानों को गुमराह करने शुरू कर दिया है। जबकि सब जानते हैं कि किसान विरोधी तीनों काले कानून को लागू करने का मतलब खेती को कारपोरेट के हाथों देना, कालाबाजारियो के लिए जमाखोरी का छूट देना और छोटे किसानों को अपने ही खेत में मजदूर बनकर काम करना जिसकी नियति रही है। वैसे में किसानों को गुमराह करने का काम केंद्र सरकार के द्वारा करके यह साबित किया जा रहा है कि यह मोदी की सरकार जो कहती वह करती नहीं है और जो करती वह करती नहीं है, इसलिए एक बार फिर किसानों के सामने एक लंबे संघर्ष और जुझारू संघर्ष, एकजुट संघर्ष के शिवाय दूसरा कोई रास्ता नजर नहीं आता।

इतिहास इस बात की साक्षी है कि जब भी सरकारी जुल्म और जनविरोधी नीतियों के खिलाफ मजबूत आंदोलन हुआ है। तो जनता की जनवादी ताकतों के सामने बड़ी-बड़ी सरकारों को भी झुकना पड़ा है। इसलिए हम सभी किसानों को एकजुट होकर एक लंबे संघर्ष के लिए तैयार रहना है।

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