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लालू-राजबल्लभ परिवार के बीच लंबा खींचेगा सियासी जंग? –  नवादा |

दोनों परिवाराें के बीच बनते-बिगड़ते रहे हैं राजनीतिक रिश्ते

रवीन्द्र नाथ भैया |
राजद परिवार यूं कहें लालू फैमिली से एक बार फिर पूर्व मंत्री राजबल्लभ प्रसाद के परिवार के रिश्ते मधुर नहीं हैं। गतिरोध को टालने का प्रयास भी नहीं हो रहा है। ऐसे में दूरियां लगातार बढ़ती जा रही है। इसकी पहली झलक तब देखने को मिली जब उदय कुमार यादव को जिला का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया।
एमएलसी चुनाव के वक्त से अध्यक्ष का पद रिक्त था। जिलाध्यक्ष महेंद्र यादव टिकट न मिलने से नाराज होकर पद से इस्तीफा दे दिया था। 25 अप्रैल 22 को प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह द्वारा कार्यकारी जिलाध्यक्ष मनोनयन का पत्र जारी किया गया। जिस उदय यादव को अध्यक्ष बनाया गया है, राजद के सदस्य तक नहीं थे। अब अचानक से अध्यक्ष बन गए। एमएलसी उम्मीदवार रहे श्रवण कुशवाहा का समर्थन चुनाव के दौरान किया था, इसका इनाम मिला।
इस मनाेनयन के बाद अचानक से नवादा विधायक विभा देवी सक्रिय हुई और 26 अप्रैल को पार्टी कार्यालय में बैठक कर जन समस्याओं के निपटारे के लिए काम करने की बात कही।
इस बैठक में नव निर्वाचित एमएलसी अशोक यादव भी थे। पार्टी कार्यालय में राजद व तेजस्वी के बैनर-पोस्टर के बीच बैठक का आशय यह संदेश देने था कि मैं पार्टी के साथ हूं। हालांकि, नए जिलाध्यक्ष से बात-मुलाकात नहीं हुई।
दोनों परिवारों के बीच आते रहे हैं खटास :-
अब, समझते हैं इन दूरियों की वजह। कोई मोहब्तत एक तरफा हो ही नहीं सकता।
नवादा में राजद का पर्यायवाची राजबल्लभ परिवार माने जाते रहे हैं। दोनों परिवार के बीच 1990 से राजनीति रिश्ता रहा है।
हालांकि, 32 साल के इस सफर में पांच-छह ऐसे मौके आए जब दोनों परिवार में दूरियां बढ़ी, यह भी कह सकते हैं कि राजबल्लभ परिवार ने लालू परिवार को चुनौती दी। 1995 के विधानसभा चुनाव में राजद ने टिकट नहीं दिया तो राजबल्लभ निर्दलीय चुनाव लड़े और जीते। फिर, 1996 में लालू प्रसाद ने नवादा लोकसभा की सीट गठबंधन में सीटिंग के नाते सीपीएम के लिए छोड़ दी तो राजबल्लभ प्रसाद ने निर्दलीय मालती देवी का चुनाव लड़ा दिया। नतीजा रहा कि सीपीएम उम्मीदवार हार गए और भाजपा की जीत हो गई थी। 2004 में राजद ने वीरचंद पासवान को लोकसभा चुनाव का टिकट दिया। राजबल्लभ परिवार को यह नहीं भाया। मनभर विरोध किया। फिर भी राजद जीत गया था। 2009 में नवादा लोकसभा की सीट सामान्य हुई तो राजद ने सीट गठबंधन में लोजपा का दे दिया। राजबल्लभ प्रसाद स्वयं निर्दलीय चुनाव लड़ गए। यह अलग बात है कि सफलता नहीं मिली।
अब 2022 के एमएलसी चुनाव में राजद ने श्रवण कुशवाहा को टिकट दिया। राजबल्लभ परिवार से अशोक यादव बगावत कर उम्मीदवार हो गए। चुनाव भी जीत गए हैं। चुनाव के दौरान राजबल्लभ प्रसाद का पूरा कुनबा अधिकृत उम्मीदार के खिलाफ रहा।
नेतृत्व को खटक रहा राजबल्लभ परिवार का व्यवहार :-
जानकार, बताते हैं कि एमएलसी चुनाव को लेकर राजबल्लभ परिवार का व्यवहार राजद के शीर्ष नेतृत्व को खटक रहा है। एमएलसी बनने के बाद अशोक यादव राबड़ी आवास तक गए जरूर लेकिन चंद घंटे बाद ही मुख्यमंत्री आवास से जारी अशोक यादव की तस्वीर ने सियासत को गरमा दिया था।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अशोक यादव के कंधा पर हाथ रखे दिख रहे थे। उसके बाद अशोक यादव के बयान भी राजद नेतृत्व को चुभने वाला रहा। नीतीश कुमार विकास पुरूष हैं…, जहां विकास वहां अशोक…, हमारे भविष्य का फैसला राजबल्लभ यादव करेंगे…, आदि बयानों ने राजद नेतृत्व को ज्यादा परेशान किया।
यही वजह रहा कि उदय यादव को जिलाध्यक्ष की कमान सौंप दी गई है। नेतृत्व के इस निर्णय ने राजबल्लभ परिवार को भी परेशान किया है। ऐसा नहीं होता तो तेजस्वी की तस्वीर के साथ विधायक विभा देवी व एमएलसी अशोक यादव नहीं दिखते।
होगा मेल-मिलाप या जारी रहेगा खटास:-
अंत में यह सवाल फिर कौंधने लगा है कि दोनों राजनीतिक परिवारों के बीच की तल्खी इसी प्रकार आगे भी जारी रहेगी, या दोनों ओर से कुछ बड़ा होगा।
उदय यादव को जिलाध्यक्ष की कमान सौंपने से ऐसा संकेत तो मिल ही गया है कि फिलहाल राजद नेतृत्व बड़ी लकीर खींचने का प्रयास कर रहा है। भविष्य में क्या कुछ होगा, सभी की निगाहें बनी रहेगी।

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